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जन्म से ब्राह्मण या उच्च जाति का मानने वालों के पास इसका कोई प्रमाण नहीं है | ज्यादा से ज्यादा वे इतना बता सकते हैं कि कुछ पीढ़ियों पहले से उनके पूर्वज स्वयं को ऊँची जाति का कहलाते आए हैं | ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सभ्यता के आरंभ से ही यह लोग ऊँची जाति के थे | जब वह यह साबित नहीं कर सकते तो उनको यह कहने का क्या अधिकार है कि आज जिन्हें जन्मना शूद्र माना जाता है, वह कुछ पीढ़ियों पहले ब्राह्मण नहीं थे ? और स्वयं जो अपने को ऊँची जाति का कहते हैं वे कुछ पीढ़ियों पहले शूद्र नहीं थे ? मनुस्मृति ३.१०९ में साफ़ कहा है कि अपने गोत्र या कुल की दुहाई देकर भोजन करने वाले को स्वयं का उगलकर खाने वाला माना जाए | अतः मनुस्मृति के अनुसार जो जन्मना ब्राह्मण या ऊँची जाति वाले अपने गोत्र या वंश का हवाला देकर स्वयं को बड़ा कहते हैं और मान-सम्मान की अपेक्षा रखते हैं उन्हें तिरस्कृत किया जाना चाहिए | मनुस्मृति २. १३६: धनी होना, बांधव होना, आयु में बड़े होना, श्रेष्ठ कर्म का होना और विद्वत्ता यह पाँच सम्मान के उत्तरोत्तर मानदंड हैं | इन में कहीं भी कुल, जाति, गोत्र या वंश को सम्मान का मानदंड नह...
जातिय मुद्दे लिखने का मेरा मकशत किसी चोट पहुँचाना नहीं होता है। जिस वक्त हम जातिय विभेद कर रहे होते हैं उस वक्त बहुत तकलीफ हो रही होती है। मगर क्या करें, जब लोग आज के बदले व्यवस्था को नजरंदाज कर वर्षों पुरानी घिसी पिटी व्यवस्थाओं का रोना रोने लगते हैं तो गुस्सा आ जाता है उसके घटिया और पिछड़ी हुई सोंच पर हमें गुस्सा आ जाता है तब जब वो हिन्दू होकर हिन्दू विरोधी बातें करता है और अपने धर्म को गाली देता है। हमें गुस्सा तब आता है जब अपनी निकम्मेपन को छुपाने के लिए व्यवस्था और जातिय भेदभाव का आरोप लगाता है। हमारा सवाल उन कथित पिछड़े, शोषित पीड़ित दलितों से है कि क्या आज राजा या राजतंत्र है क्या आज जमींदारी है क्या आज भेदभाव और छूआछुत है क्या आज तुम्हें शिक्षा से वंचित किया जा रहा है क्या आज तुम्हारा शोषण हो रहा है अगर नहीं तो आजादी के 70 सालों से विशेष संवैधानिक व्यवस्था दिये जाने के बाद भी तुम आज भी पीड़ित, शोषित, दबा कुचला दलित कैसे हो.......????? इंसानी शक्ल में तुम अगर पैदा हुए हो तो थेथरलॉजी करने या वर्षों पुरानी राग पर रोना रोने के बजाय इमानदारी से सटीक जबाब देना।