जातिय मुद्दे लिखने का मेरा मकशत किसी चोट पहुँचाना नहीं होता है। जिस वक्त हम जातिय विभेद कर रहे होते हैं उस वक्त बहुत तकलीफ हो रही होती है। मगर क्या करें, जब लोग आज के बदले व्यवस्था को नजरंदाज कर वर्षों पुरानी घिसी पिटी व्यवस्थाओं का रोना रोने लगते हैं तो गुस्सा आ जाता है उसके घटिया और पिछड़ी हुई सोंच पर
हमें गुस्सा आ जाता है तब जब वो हिन्दू होकर हिन्दू विरोधी बातें करता है और अपने धर्म को गाली देता है।
हमें गुस्सा तब आता है जब अपनी निकम्मेपन को छुपाने के लिए व्यवस्था और जातिय भेदभाव का आरोप लगाता है।
हमारा सवाल उन कथित पिछड़े, शोषित पीड़ित दलितों से है कि क्या आज राजा या राजतंत्र है
क्या आज जमींदारी है
क्या आज भेदभाव और छूआछुत है
क्या आज तुम्हें शिक्षा से वंचित किया जा रहा है
क्या आज तुम्हारा शोषण हो रहा है

अगर नहीं तो आजादी के 70 सालों से विशेष संवैधानिक व्यवस्था दिये जाने के बाद भी तुम आज भी पीड़ित, शोषित, दबा कुचला दलित कैसे हो.......?????

इंसानी शक्ल में तुम अगर पैदा हुए हो तो थेथरलॉजी करने या वर्षों पुरानी राग पर रोना रोने के बजाय इमानदारी से सटीक जबाब देना।

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