भारत के सारे विपक्षियों का एक साथ आना ही मोदी के विकास और सफलतापूर्वक सुशासन की गाथा बयां कर रहा है ये मोदी सरकार के चार सालों के काम का ही नतीजा है कि भाजपा का अश्वमेघ यज्ञ राज्य दर राज्य केसरिया फहराता जा रहा है और इन सबसे इतर सारे विरोधी दल थर-थर कांपते हुये एक मंच से इस अश्वमेघ को रोकने की नाकामयाब कोशिश में हांफ-हांफ कर गिर रहे हैं।विगत चार वर्षों में सुशासन की वो आंधी चली जो विगत दस वर्षों के कुशासन, भ्रष्टाचार को उड़ा कर ले गयी। आमजन में सुशासन की धारणा ने आमजन में अपेक्षाओं को कई गुना बड़ा दिया। आमजन आश्वस्त है कि अब अपेक्षाएं पूरी होंगी , थोड़ा समय लगेगा लेकिन उपेक्षित नहीं होना होगा। चार साल पहले देश का क्या हाल था, जनता में सरकार का विश्वास टूट चुका था, भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार था, रीमोट चलित प्रधानमंत्री डरे-डरे दिखते थे, पड़ोसी देश डरा-धमका जाते थे, विदेशों में हमें बेईमान कहा जाता था। भाजपा के चार सालों में मोदी जी ने देश की भ्रष्ट इमेज खत्म कर दी। बात चार साल की चल रही है चार साल पहले विश्व में भारत की स्थिति किसी से छिपी नहीं है और मोदी सरकार के चार सालों ने पूर...
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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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कर्नाटक राजनीति के सह और मात के खेल में भाजपा ने कांग्रेस को राजनैतिक मात तो दे दी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। कर्नाटक में नाटक तो दोनों ने किया। भाजपा भी और कांग्रेस-जेडीएस भी। सरकार तो कांग्रेस जेडीएस का ही बनना था। ये कांग्रेस जेडीएस भी जनता था और भाजपा भी जानता था। भाजपा ने कांग्रेस को नंगा करने के लिए तीन दिन नाटक किया तो कांग्रेस ने भाजपा पर विधायकों के खरीद फरोख्त का आरोप लगाकर बदनाम करने का नाटक किया। कांग्रेस ने अपने विधायकों को खुद ही छिपाकर भाजपा पर आरोप लगाया कि मेरे विधायकों को सौ सौ करोड़ में खरीद रहा है। जब सौ सौ करोड़ में विधायक बिक ही गया था तो तो फिर कांग्रेस जेडीएस ने सरकार कैसा बनाई। इधर भाजपा ने सरकार बनाने का दाबा पेशकर कांग्रेसियों की बेचैनी बढ़ा दी। इसी आनन फानन में कांग्रेस ने एक नया इतिहास बना डाला। भारतीय राजनीति के इतिहास में बड़ी पार्टी छोटी पार्टी से समर्थन मांगता था, मगर कर्नाटक मामले में पहली बार 130 साल की पुरानी सरकार मात्र 38 सीट पाने वाले एक क्षेत्रीय पार्टी के आगे नतमस्तक हो गया सत्ता के लिए। भले ही कांग्रेसी माने या न माने, म...
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शिक्षा इंसान के विकास की बुनियाद होती है... ऐसा सुना था, पर विकास समाज का दुश्मन होगा.... ये मैने कभी नहीं सुना था। जब देश में जाति आधारित कार्य चल रहे थे और सभी अपने अपने कर्म का निर्वहन कर रहे थे उस वक्त भी समाज में शायद इतनी कटुता, नफरत, घृणा नहीं थी, जितनी आज है। धीरे धीरे इस व्यवस्था को खत्म कर समानता की आवाज उठने लगी। अच्छी पहल थी। होना भी चाहिए। बिलकुल सही बात है सबको समान अधिकार मिलना चाहिए। आज के दौर में सबसे प्रचलित शब्द #सामंती कहे जाने वालों ने तो रियासत, जमींदारी, जमीन और राजपाट सभी त्याग दिये देश के आजादी के बाद। मगर क्या देश में समानता आई...???? हम दाबे के साथ कह सकते हैं कि समानता लाने वाले ठेकेदारों ने समानता तो नहीं ला पाया पर शांति, एकता और प्रेम से चल रहे समाज को छिन्न भिन्न कर असमानता का जहर जरूर घोल दिया, लोगों में नफरत, कटुता और वैमनस्यता जरूर भर दिया। इन समाज सुधारकों ने समानता के नाम पर खुद की मजबुती करते हुए गरीबों के पेट पर लात जरूर मार दिया। ऐसी हालत कर दी कि अपनी जमीन छोड़ पलायन करने को मजबूर हो गया और उसका भी ठीकरा सवर्णों पर ही फोड़ा गया। समाज में ...