या तो भाजपा राजनीति में अपरिपक्व है या कोई लम्बी चाल चली है राजनीति की रेस में। 


पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार के आने के बाद से ही कांग्रेस हिन्दु वोटरों से भयभीत हो चुकी थी। शायद उसे अनुमान नहीं था कि देश के हिन्दु एकजुट होकर मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत दे देगा।
कांग्रेस को लगा कि अगर यही हाल रहा तो शायद ही पार्टी की सत्ता में वापसी होगी। इसलिए कांग्रेस ने रणनीति तय की कि अब किसी तरह हिन्दुओं को तोड़ा जाए। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस शतरंज की विसात बिछानी शुरू कर दी। पिछले चार सालों से अपने बिछाये विसात पर कांग्रेस लगातार मात खाती जा रही थी। कांग्रेस और भाजपा दोनों को पता है कि दलित और मुस्लिम वोट कभी भाजपा को नहीं मिलती है। इसी सोच के साथ कांग्रेस उन हिन्दुओं को तोड़ने में जूट गई जो भाजपा का कैडर वोट है और वो वोट है ओबीसी से आने वाले वैश्य समाज और सामान्य वर्ग से आने वाले राजपूत, ब्राह्मण, भुमिहार व कायस्त समाज। जरूरत थी सामान्य वर्ग को तोड़ा कैसे जाए। तब उसने कोर्ट में बैठे वामपंथी और कांग्रेसी जजों के माध्यम से तीस से गड़े मूर्दे को उखाड़ा और एससी एसटी कानुन में खामियाँ बताकर संसोधन करने के लिए अध्यादेश लाने की आदेश मोदी सरकार को दे दी। ये एक ऐसा मुद्दा था जो उगलो तो अंधा और निगलो तो कोढ़ी वाली हाल भाजपा के मोदी सरकार के लिए हो गयी। एससी एसटी कानुन वाली अध्यादेश लाने के मामले में मेरे विचार से भाजपा ने अपरिपक्वता दिखाई या यों कहें कि कहीं न कहीं कांग्रेस के मुकाबले भाजपा राजनैतिक कौशल में कमजोर पड़ गयी।
भाजपा चाहती तो अध्यादेश का गेंद कांग्रेस के पाले में डाल सकती थी और जो भाजपा के खिलाफ आवाज उठ रही है, उसको मौका ही नहीं देती। भाजपा बहुमत के साथ सरकार में तो है पर राज्यसभा में अल्पमत में है। ऐसी हालत में भाजपा के लिए किसी भी अध्यादेश पास कराना संभव ही नहीं है। लोकसभा से पास तो हो जाता, मगर राज्यसभा में जाकर फंस जाता। एससी एसटी कानुन के मामले में मोदी सरकार अध्यादेश को लोकसभा से पास कर राज्यसभा में ले जाकर गेंद कांग्रेस के पाले में छोड़ देना चाहिए था। एससी एसटी कानुन में संसोधन वाली अध्यादेश मामले में मोदी सरकार राजनैतिक मात खा गया और कांग्रेस अपने मंसुबे में सफल हो गया। आज जो ठिकरा मोदी सरकार पर फूट रही है वही ठिकरा कांग्रेस पर फूट रही होती। मोदी सरकार अध्यादेश को राज्यसभा में बहुमत वाली कांग्रेस के लिए गले की हड्डी साबित होती। मगर भाजपा ने मौका खो दिया। राज्यसभा में जाने के बाद कांग्रेस के लिए दुबिधा वाली स्थिति हो जाती। अध्यादेश पर राज्यसभा में मुहर लग जाती तो दलित समाज कांग्रेस से नाराज हो जाता और मुहर नहीं लगता तो सवर्ण समाज कांग्रेस से नाराज हो जाता। कांग्रेस अपने ही बुने हुए जाल में फंस जाती। मगर मोदी सरकार ने दलित वोट को अपनी ओर करने की लालच में एससी एसटी कानुन में संसोधन वाली अध्यादेश को न लाकर और कोर्ट को यथावत स्थित में ही रहने देने के फैसले के साथ अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। जो वोट भाजपा की कभी थी नहीं उसको अपने पक्ष में करने के चक्कर में उन सामान्य वर्ग के वोटरों से दूर होता जा रहा है जो हमेशा भाजपा के साथ थी। एससी एसटी कानुन मुद्दा भाजपा को नुकसान तो करेगी, मगर कांग्रेस को भी ज्यादा लाभ नहीं होने वाला है। भाजपा वैसे इतना भी अबोध नहीं है कि वो अपने नफा नुकसान को नहीं समझ सके। जो मोदी पुरी दुनिया के राजनयिकों को अपने पक्ष में कर सकता है, वो निश्चित ही कोई एसी बाजी चली है जो भविष्य में कांग्रेस को भी समझ में आ जायेगा और उन सवर्णों को भी जो आज भाजपा के खिलाफ नोटा लेकर खड़े हैं।
भाजपा की मोदी सरकार कुछ न कुछ तो खिचड़ी पका रही है जो शायद भविष्य के गर्त में है। शायद यही वजह है कि भाजपा सरकार में बैठे सवर्ण खामोश है। मोदी सरकार अगर वोट की चिंता करती तो शायद नोटबंदी नहीं करती। मोदी के कुछ फैसले ऐसे हैं रहे हैं जो मोदी सरकार पर भरोसा करने को मजबुर करती है।

(हो सकता है जो मैं लिखा हूँ वो गलत भी हो सकता है। ये मेरे अपने विचार हैं)

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