लोकतंत्र में जनता मालिक होता है
नरेश अग्रवाल, कपिल सिब्बल, मणिशंकर अय्यर,दिग्विजय सिंह जैसे तमाम नेताओं के बयान पर पुरे देश में हाय तौबा मच जाती है। लोग अपना खुन जलाकर उनको आत्म संतुष्टि तक गाली देते हैं। मगर जिस बात पर हम देश की जनता को गौर करना चाहिए उस बात पर गौर नहीं करते हैं। कोई नेता ओछी बयानबाजी कर देता है और देश दो दिन उसकी माँ बहन एक कर फिर सो जाता है।
जब सही वक्त आता है उसको उसकी औकात दिखाने की तो लगते हैं उसकी चिड़ौड़ी करने।
हमारा कोई हक नहीं बनता है कि हम किसी नेता या मंत्री को गाली दें, क्योंकि हम ही हैं जो चंद फायदा देखकर या फिर जाति देखकर या क्षेत्रवाद देखकर या पार्टी देखकर इन जैसों को चुनकर भेजते हैं। जब हम ऐसे उठायगीर लोगों को चुनकर भेजेगें जिसको बोलने तक की तमीज नहीं है तो उससे अच्छे ब्यान की उम्मीद करना मूर्खता है। हम हर जगह ये कहते नहीं थकते हैं कि फलां नेता मंत्री चोर है, बेइमान है, भ्रष्ट है, घुसखोर है....... मगर कोई खुद पर कभी आत्म मंथन नहीं करता है कि जब वो नेता चोर, बेइमान, भ्रष्ट और घुसखोर ही था तो वोट देकर उसको भेजे ही क्यों?
जब चुनाव आता है तो जनता के ठेकेदार बने चंद दलाल के मन में एक ही बात आता है कि कौन कितना खर्च करेगा, कौन रूपया, मूर्गा, शराब देगा। क्षणिक लोभ लाभ की चाशनी में डुबकी लगाकर जब हम अपना जनप्रतिनिधि चुनेगें तो बाद में हम उससे अच्छे की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
कोई इमानदार और स्वाभिमानी इंसान तो हमको मुर्गा, शराब और पैसा नहीं देगा..... निश्चित ही जो चोर, भ्रष्ट और बेइमान नेता होगा वही चुनाव में हम पर खर्च की बरसात करेगा।
इसलिए हम ये दाबे के साथ कह सकते हैं कि न हमारा देश खराब है, न हमारा संविधान खराब है, न हमारा लोकतांत्रिक व्यवस्था खराब है और न लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नेता खराब है। अगर कोई खराब है तो सौ फीसदी ही नहीं, दो सौ फीसदी सिर्फ और सिर्फ देश की जनता खराब ही नहीं.... चोर, भ्रष्ट और बेइमान भी है। और जब जनता चोर भ्रष्ट और बेइमान होगा तो उसके द्वारा चुना गया नेता भी चोर भ्रष्ट और बेईमान ही होगा। क्योंकि जो जैसा होता है वो वैसे ही लोगों को चुनता है।
नरेश अग्रवाल, कपिल सिब्बल, मणिशंकर अय्यर,दिग्विजय सिंह जैसे तमाम नेताओं के बयान पर पुरे देश में हाय तौबा मच जाती है। लोग अपना खुन जलाकर उनको आत्म संतुष्टि तक गाली देते हैं। मगर जिस बात पर हम देश की जनता को गौर करना चाहिए उस बात पर गौर नहीं करते हैं। कोई नेता ओछी बयानबाजी कर देता है और देश दो दिन उसकी माँ बहन एक कर फिर सो जाता है।
जब सही वक्त आता है उसको उसकी औकात दिखाने की तो लगते हैं उसकी चिड़ौड़ी करने।
हमारा कोई हक नहीं बनता है कि हम किसी नेता या मंत्री को गाली दें, क्योंकि हम ही हैं जो चंद फायदा देखकर या फिर जाति देखकर या क्षेत्रवाद देखकर या पार्टी देखकर इन जैसों को चुनकर भेजते हैं। जब हम ऐसे उठायगीर लोगों को चुनकर भेजेगें जिसको बोलने तक की तमीज नहीं है तो उससे अच्छे ब्यान की उम्मीद करना मूर्खता है। हम हर जगह ये कहते नहीं थकते हैं कि फलां नेता मंत्री चोर है, बेइमान है, भ्रष्ट है, घुसखोर है....... मगर कोई खुद पर कभी आत्म मंथन नहीं करता है कि जब वो नेता चोर, बेइमान, भ्रष्ट और घुसखोर ही था तो वोट देकर उसको भेजे ही क्यों?
जब चुनाव आता है तो जनता के ठेकेदार बने चंद दलाल के मन में एक ही बात आता है कि कौन कितना खर्च करेगा, कौन रूपया, मूर्गा, शराब देगा। क्षणिक लोभ लाभ की चाशनी में डुबकी लगाकर जब हम अपना जनप्रतिनिधि चुनेगें तो बाद में हम उससे अच्छे की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
कोई इमानदार और स्वाभिमानी इंसान तो हमको मुर्गा, शराब और पैसा नहीं देगा..... निश्चित ही जो चोर, भ्रष्ट और बेइमान नेता होगा वही चुनाव में हम पर खर्च की बरसात करेगा।
इसलिए हम ये दाबे के साथ कह सकते हैं कि न हमारा देश खराब है, न हमारा संविधान खराब है, न हमारा लोकतांत्रिक व्यवस्था खराब है और न लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नेता खराब है। अगर कोई खराब है तो सौ फीसदी ही नहीं, दो सौ फीसदी सिर्फ और सिर्फ देश की जनता खराब ही नहीं.... चोर, भ्रष्ट और बेइमान भी है। और जब जनता चोर भ्रष्ट और बेइमान होगा तो उसके द्वारा चुना गया नेता भी चोर भ्रष्ट और बेईमान ही होगा। क्योंकि जो जैसा होता है वो वैसे ही लोगों को चुनता है।
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