उपेक्षा के पिंजरे को तोड़ने के लिए बेताब हिन्दूत्व
पिछले चार सालों में जिस तरह से देश में  हिन्दुत्व शक्ति बढ़ी है या देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं में हिन्दुत्व के प्रति जागरूकता आई है, उससे यही लगता है कि आने वाले समय में देश की दशा और दिशा तय करने में अहम भूमिका निभायेगी।
इसका मुख्य वजह देश में बहुमत से बनी भाजपा की सरकार है। हलांकी ऐसा नहीं है कि पहले भाजपा की सरकारें नहीं बनी थी। बनी थी पर उन सरकारों को न बहुमत थी और न हिन्दुवादी चेहरा, जिसके नेतृत्व में देश के हिन्दुओं का मनोबल बढ़े।
अब सबसे बड़ी सवाल है कि आखिर हिन्दू इतनी  उत्साहित क्यों हैं। क्यों आज हर हमले का मजबूती से प्रतिकार कर रहे हैं। क्यों हिन्दुओं और हिन्दुत्व के खिलाफ उठने वाली हर आवाज का जबाब दृढता दे रहे हैं। क्यों वो अपने अधिकारों को के प्रति संजिदा हो गये हैं। इन सब सवालों के जवाब के लिए हमें अपने इतिहास और धार्मिक विचारधाराओं के मान्यताओं पर जाना होगा। सबसे पहले हम सनातन के उन संस्कारों की बात करते हैं जिनमें कहा गया है कि पुरी पृथ्वी, पृथ्वी पर निवास करने वाले हर सजीव और निर्जीव में परमात्मा का निवास है। सनातन धर्म में सभी चीजें समाहित है। ये धर्म कभी भेदभाव, द्वेष, छल कपट का समर्थन नहीं करता है। सनातन हमेशा सभी की कल्याण की बात करता है। हर जीव और निर्जीव में समानता की बात करता है। यही संस्कार हमें आज तक अदृश्य बंधनों में बांध रखा था। यही वजह था कि हमारा देश हजारों सालों तक गुलामी करता रहा। सनातनी दुनियाँ के छल कपट, धोखे, चालबाजी को अपने संस्कारों में बंधकर नजरंदाज करता रहा। इसी वजह से भारत देश हजारों वर्षों तक कभी मुगलों तो कभी अंग्रेजों का गुलाम रहा। देश के आजादी के पहले कुछ धीरे धीरे बदलाव की ओर कदम  उठाये पर ब्रितानी हुकूम के आगे उनकी एक भी नहीं चली। जब देश आजाद हुआ तो भारतीयों को लगा कि अब हम खुद मालिक हैं अपने भविष्य निर्माण का। पर देश के आजादी के बाद देश के नीति निर्धारकों ने अपने देश की आवोहवा, रहन सहन, सोच को नजरंदाज करते हुए अंग्रेजों के संविधान में मामूली बदलाव कर ज्यों का त्यों देश वासियों पर लागु कर दिया गया। उस बदले संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई कि देश की मजबूती को ध्यान में न रख छद्म फायदे और नुकसान को देखते हुए जाति और धर्म आधारित व्यवस्था कर दी गई। नतीजा ये हुआ कि आजाद भारत की जनता भारतीयता की एक सूत्र में बंधने की बजाय जातिय और धार्मिक सूत्र में बंधते गये और भारतीयता की माला लगातार कमजोर होती गई। इस संवैधानिक व्यवस्था में सबसे ज्यादा हिन्दू उपेक्षित होते गये। उसकी वजह ये था कि संविधान में जो जातिय व्यवस्था पर आधारित सुविधाएं देने का जो प्रावधान किया गया वो हिन्दुओं के बीच जहर का काम किया। हिन्दु समाज में जातिय वैमनष्यता बढती गयी। धार्मिक आधार पर भी संविधान में एक वर्ग को विशेष सुविधा की व्यवस्था की गई। बाकी बचे हिन्दू खुद को आजादी मिलने के बाद ठगा महसुस करने लगे। पर कर भी क्या सकते थे। आजादी मिलने के बाद देश लोकतांत्रिक प्रणाली से जुड़ गया। लोकतंत्र में जनता अपने नीति निर्धारक को चुनता है वोट देकर। इसी वोट बैंक की राजनीति ने हिन्दुओं को सबसे ज्यादा कमजोर किया। एक वर्ग विशेष के लिए विशेष सुविधा तो पहले ही कर दी गई थी, इस वजह से वो वर्ग उस नीति निर्धारक का समर्थन वोट बैंक के रूप में करने लगा।
अब बचे दूसरी वर्ग बहुसंख्यक हिन्दू। उस समय की कांग्रेसी सरकार लम्बे समय तक सत्ता पर काबिज रहने के लिए बहुसंख्यक हिन्दुओं को जातिय आधार पर विशेष सुविधाओं की व्यवस्था कर हिन्दुओं को तोड़ने में सफल रहा।शेष बचे हिन्दू भी ऊंच और नीच की भेदभाव कर हिन्दुओं को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नतीजा हुआ कि जो जातियाँ या धर्म के लोग संगठीत रहे सत्ता उन्ही लोगों को तबज्जो देने लगी। ऐसा भी वक्त आया कि देश के राजनीति का दशा और दिशा देने में वो वर्ग अहम भूमिका निभाने लगे जिनकी आबादी अत्यधिक ही कम थी। हिन्दु बहुसंख्यक होकर भी दया और याचना के पर्याय बन गये। जब देश के बहुसंख्यक हिन्दू जातिवाद में बिखर गये तो सबसे मजबूत वोट बैंक के रूप में वो वर्ग उभरा जिसको संवैधानिक भाषा में हम अल्पसंख्यक कहते हैं। अल्पसंख्यकों की राजनैतिक एकता लगातार बहुसंख्यक हिन्दुओं को हासिये पर लाता गया। हिन्दुओं के एक धरा को विशेष जातिय सुविधाएँ तो दी गई पर राजनीति और सत्ता में दखलंदाजी अल्पसंख्यकों के मामले में पीछे ही रही... या युँ कहें कि सत्ता का पिछलग्गू मात्र बन कर रह गया। 
बदलते वक्त में बहुसंख्यक हिन्दू खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे। पर ये कुछ कर नहीं पा रहे थे। तब आज की भाजपा और उस वक्त का जनसंघ बहुसंख्यक हिन्दुओं का मुखालफत करने लगा। जनसंघ के आने के बाद देश के हिन्दुओं में थोड़ी आशा जगी। जनसंघ हिन्दुओं में उनके अधिकार की लड़ाई के लिए जागरूक करने लगा। जनसंघ के दखलंदाजी के बाद भारतीय हिन्दु कांग्रेस से विमुख होने लगे। नतीजा पुरे देश पर शासन करने वाली कांग्रेस धीरे धीरे कमजोर होती गई। पहले राज्यों से सिमटने लगा और फिर केन्द्र में भी कमजोर होती गई। पहले का जनसंघ बाद में जाकर भाजपा के रूप में एक राजनैतिक पार्टी बन आई उन हिन्दुओं के लिए जो वोट बैंक की राजनीति में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा था। भाजपा इन उपेक्षित हिन्दुओं के साथ खड़ा हुआ और हिन्दुत्व के स्वाभिमान के लिए अपनी आवाज बुलंद करने लगी। भाजपा ने राम मंदिर का मुद्दा उछाल कर भारतीय हिन्दुओं को ये बताने में सफल रही कि हिन्दुस्तान के हिन्दुओं का एकमात्र पार्टी है भाजपा।

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