आज जब सोशल मीडिया पर नजर डाला तो सिर्फ बचपन दिखा। कहीं भूखा-नंगा,मजदूरी करता, भीख मांगता, कहीं खुद की और छोटी बहन का भूख मिटाता, कहीं बिमार माँ का आंसु पोछता तो कहीं दवा के अभाव में अंतिम सांसें गिनता तो कहीं बचपन की मौत पर कलेजा चिड़ती माँ की चित्कार...... और दूसरी तरफ नेहरू टाईप सोने चांदी की चम्मच मूँह में लेकर पैदा हुआ हंसता, खिलखिला, तन के चिथड़ों पर अट्टाहस करता बचपन........ इन्हीं दो परिस्थितियों के द्वंद में हम हर वर्ष बचपन को जीते हैं, गुजारते हैं, और एक ठंडी आह भर कर बचपन की दुनिया में खो जाते हैं.... काश..... वो दौर पुन: लौटकर आता।....... काश..... काश......!!!!!

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