मुसलमान चाहे दो कौड़ी का हो या अरबपति, पढ़ा लिखा हो या जाहिल.... बात जब धर्म की आती है तो उसको किसी का मान सम्मान, इंसानियत, मानवता, प्रेम भाईचारा और जाति कुछ भी नजर नहीं आता है.... उसको नजर आता है तो बस सिर्फ कौम.... चाहे कौम में एक सौ नहीं बल्कि एक हजार खराबियाँ हो।
और एक तरफ है वो हिन्दू जो शायद एक मुहल्ले का चुनाव भी जितने की औकात न हो, दिन भर तलवा चाटने की आदत हो चुकी हो, इंसानियत, मानवता और प्रेम भाईचारा के नाम पर नपुंसकता छिपाने की आदत हो गई हो..... इसके बाद भी जब पिछवाड़ा शांत नहीं होता है तो शुरू हो जाता है जाति के नाम पर भड़वागिरी करने।
जब ऐसे ऐसे दोगले और मुल्लों के दलाल हिन्दू देश में है तो 14% की आबादी वाला पंचर टाइप दो कौड़ी का मुल्ला फड़फड़ायेगा हीं। जिसके मजार पर हिन्दु अगर चवन्नी न उछाले तो एक चादर नसीब न हो उसके मजार पर.....बाबजूद हिन्दुओं को चाईलेंज दिया जाता है क्योकि वो जानता है कि 80% हिन्दू दलाल, मूर्ख, भड़वे और तलवाचट है....मुसलमान जानता है कि यहाँ के हिन्दुओं की औकात कूत्ते की हड्डी भर है, हड्डी फेंको तो हिन्दु मुसलमानों के आगे पीछे दूम ही नहीं हिलायेगा बल्कि अपना बहनोई और दामाद बनाने में भी देर नहीं करेगा।

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