कुछ सवर्णों को लगता है कि मैं सवर्ण होते हुए भी सवर्णों का विरोध कर रहा हूँ। बिलकुल करूँगा... क्योंकि मैं ढोंग नहीं करता। मुझे भी नफरत है आरक्षण और एससी एसटी कानुन से और साथ ही नोटा से भी। आज जो सवर्ण आरक्षण और एससी एसटी कानुन के आड में नोटा का समर्थन कर रहे हैं वो दरअसल ढोंग कर रहे हैं। मैं किसी भी समस्या का जड़ तलाश कर उसको खत्म करने की बात करता हूँ न कि डाल काटता हूँ।
मै उन सवर्णों का साथ कभी नहीं दुँगा जो नोटा का समर्थन कर रहे हैं। नोटा दबाने की बात करने वाले सवर्णों से एक सवाल है कि क्या आरक्षण लागु होने वक्त सत्ता में सवर्ण नहीं था। जिस वक्त आरक्षण लागु किया जा रहा था उस वक्त चुपचाप रहकर नेहरू का तलवा चाटने वाले सवर्णों ने कभी सोचा था कि जिस आरक्षण को हम आज लागु होने दे रहे हैं वो भविष्य में हमारे आने वाली पीढीयों के लिए कितना घातक साबित होगा। उस वक्त न तो सत्ता में बैठा सवर्णों ने विरोध किया और न देशभर के सवर्णों ने। आज वही आरक्षण नासुर बन गया तो चीख रहे रहे हैं। आरक्षण का जहर तो हमारे सवर्णों ने ही हमारे समाज में घोला है।
रही बात एससी एसटी कानुन की.... तो ये कानुन भी 1989 में एक राजपूत प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने ही लाया था। उस वक्त भी वीपी सिंह के सरकार में कई सवर्ण सत्ता का सुख भोग रहे थे और इस कानुन को बनते देख रहे थे वीपी सिंह और अन्य सवर्णों ने उस वक्त कभी सोचा था कि ऐसा कानुन लाने से गैर दलितों के साथ अन्याय होगा। इस कानुन का गलत इस्तेमाल होगा और कई गैर दलित बेगुनाह होने के बाद भी जेल के सलाखों के पीछे होगा। अगर उस वक्त सता में बैठा सवर्ण विरोध विरोध किया होता तो आज नोटा का ढोंग नहीं करना पड़ता। आज भी भाजपा सरकार में भी केन्द्र से लेकर राज्य तक कई सवर्ण बैठे हैं और सत्ता सुख भोग रहे हैं। जब भी आरक्षण और एससी एसटी कानुन पर बात चलती है तो आरक्षण और एससी एसटी कानुन समर्थक सारे नेता मंत्री एक साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। मगर सवर्ण नेता मंत्रियों के मुँह से चुँ तक नहीं निकलती है। न सत्ता में बैठे सवर्णों की और न विपक्ष में बैठे सवर्णों की.... आखिर क्यो.... नोटा समर्थक सवर्ण पहले इस पर विचार और मंथन करें। आजादी से आज तक सारे सवर्णों ने सवर्ण विरोधी व्यवस्थाओं पर हमेशा से चुप रहा। उनके इस खामोशी की वजह आखिर क्या है। अगर आज के सवर्णों में सोचने समझने की शक्ति है तो पहले इस सवाल का हल खोजें।
आपके नोटा दबाने से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, बस हम जयचंद की कतार में खड़ा होना नहीं चाहते। हम नहीं चाहते कि पुरा देश हम सवर्णों को उस रामविलास पासवान की तरह गाली दे जिसकी एक वोट के वजह से अटल जी की सरकार गिर गयी थी।आने वाली पीढ़ियाँ हमें गद्दार नहीं कहे।
जो सवर्ण चाहते हैं कि आरक्षण और एससी एसटी कानुन पर लगाम लगे तो वो नोटा का समर्थन करने की जगह उन सवर्ण नेता मंत्रियों का विरोध करें जिसके बाप दादाओं ने सत्ता में रहकर भी आरक्षण और एससी एसटी कानुन बनते वक्त चुप रहा था आपको अगर सच में गुस्सा है तो पुरे देश में अभियान चलाकर सवर्णों को वोट नहीं देने की अपील करें। आपके नोटा दबाने या चीखने चिल्लाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फर्क तब पड़ेगा जब सत्ता या विपक्ष में बैठा सवर्ण जब तक आवाज नहीं उठाता है। और सत्ता या विपक्ष में बैठा सवर्ण जब तक पदहीन नहीं होगा उसे सवर्ण समाज के दर्द का एहसास नहीं होगा। जब तक सवर्ण नेता मंत्री को सत्ता और पद मिलता रहेगा तब तक वो कभी सवर्ण समाज के साथ खड़ा नहीं होगा।
सवर्ण समाज कितना भी चीखे चिल्लाये और नोटा दबाये.... कोई फर्क नहीं पड़ेगा। एक बार सवर्ण नेता मंत्रियों का बहिष्कार कर संसद और विधानसभा से बाहर करें... फिर देखियेगा यही सवर्ण नेता आपके साथ सड़क पर आन्दोलन करता नजर आयेगा। हम सवर्णों का विरोधी न तो कांग्रेस है और न भाजपा है। इन पार्टियों में बैठे सवर्ण ही सवर्ण समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है।
मै उन सवर्णों का साथ कभी नहीं दुँगा जो नोटा का समर्थन कर रहे हैं। नोटा दबाने की बात करने वाले सवर्णों से एक सवाल है कि क्या आरक्षण लागु होने वक्त सत्ता में सवर्ण नहीं था। जिस वक्त आरक्षण लागु किया जा रहा था उस वक्त चुपचाप रहकर नेहरू का तलवा चाटने वाले सवर्णों ने कभी सोचा था कि जिस आरक्षण को हम आज लागु होने दे रहे हैं वो भविष्य में हमारे आने वाली पीढीयों के लिए कितना घातक साबित होगा। उस वक्त न तो सत्ता में बैठा सवर्णों ने विरोध किया और न देशभर के सवर्णों ने। आज वही आरक्षण नासुर बन गया तो चीख रहे रहे हैं। आरक्षण का जहर तो हमारे सवर्णों ने ही हमारे समाज में घोला है।
रही बात एससी एसटी कानुन की.... तो ये कानुन भी 1989 में एक राजपूत प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने ही लाया था। उस वक्त भी वीपी सिंह के सरकार में कई सवर्ण सत्ता का सुख भोग रहे थे और इस कानुन को बनते देख रहे थे वीपी सिंह और अन्य सवर्णों ने उस वक्त कभी सोचा था कि ऐसा कानुन लाने से गैर दलितों के साथ अन्याय होगा। इस कानुन का गलत इस्तेमाल होगा और कई गैर दलित बेगुनाह होने के बाद भी जेल के सलाखों के पीछे होगा। अगर उस वक्त सता में बैठा सवर्ण विरोध विरोध किया होता तो आज नोटा का ढोंग नहीं करना पड़ता। आज भी भाजपा सरकार में भी केन्द्र से लेकर राज्य तक कई सवर्ण बैठे हैं और सत्ता सुख भोग रहे हैं। जब भी आरक्षण और एससी एसटी कानुन पर बात चलती है तो आरक्षण और एससी एसटी कानुन समर्थक सारे नेता मंत्री एक साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। मगर सवर्ण नेता मंत्रियों के मुँह से चुँ तक नहीं निकलती है। न सत्ता में बैठे सवर्णों की और न विपक्ष में बैठे सवर्णों की.... आखिर क्यो.... नोटा समर्थक सवर्ण पहले इस पर विचार और मंथन करें। आजादी से आज तक सारे सवर्णों ने सवर्ण विरोधी व्यवस्थाओं पर हमेशा से चुप रहा। उनके इस खामोशी की वजह आखिर क्या है। अगर आज के सवर्णों में सोचने समझने की शक्ति है तो पहले इस सवाल का हल खोजें।
आपके नोटा दबाने से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, बस हम जयचंद की कतार में खड़ा होना नहीं चाहते। हम नहीं चाहते कि पुरा देश हम सवर्णों को उस रामविलास पासवान की तरह गाली दे जिसकी एक वोट के वजह से अटल जी की सरकार गिर गयी थी।आने वाली पीढ़ियाँ हमें गद्दार नहीं कहे।
जो सवर्ण चाहते हैं कि आरक्षण और एससी एसटी कानुन पर लगाम लगे तो वो नोटा का समर्थन करने की जगह उन सवर्ण नेता मंत्रियों का विरोध करें जिसके बाप दादाओं ने सत्ता में रहकर भी आरक्षण और एससी एसटी कानुन बनते वक्त चुप रहा था आपको अगर सच में गुस्सा है तो पुरे देश में अभियान चलाकर सवर्णों को वोट नहीं देने की अपील करें। आपके नोटा दबाने या चीखने चिल्लाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फर्क तब पड़ेगा जब सत्ता या विपक्ष में बैठा सवर्ण जब तक आवाज नहीं उठाता है। और सत्ता या विपक्ष में बैठा सवर्ण जब तक पदहीन नहीं होगा उसे सवर्ण समाज के दर्द का एहसास नहीं होगा। जब तक सवर्ण नेता मंत्री को सत्ता और पद मिलता रहेगा तब तक वो कभी सवर्ण समाज के साथ खड़ा नहीं होगा।
सवर्ण समाज कितना भी चीखे चिल्लाये और नोटा दबाये.... कोई फर्क नहीं पड़ेगा। एक बार सवर्ण नेता मंत्रियों का बहिष्कार कर संसद और विधानसभा से बाहर करें... फिर देखियेगा यही सवर्ण नेता आपके साथ सड़क पर आन्दोलन करता नजर आयेगा। हम सवर्णों का विरोधी न तो कांग्रेस है और न भाजपा है। इन पार्टियों में बैठे सवर्ण ही सवर्ण समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है।
Absolutely right sir .I support you from bottom of my heart
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