अपनी दुर्दशा के लिए सवर्ण खुद जिम्मेदार है
राजपूत ब्राह्मण समाज सरकार को कोसकर भेदभाव का आरोप तो लगाते हैं पर कभी अपनी गिरेबां नहीं झांकते हैं। ये दोनों समाज किसी भी पार्टी के लिए न तो सौ फीसदी वोट करते हैं और न किसी एक पार्टी का समर्थन करते हैं। इन दोनों समाजों ने अपने वोट को राय का दाना बना रखा है..... दो मुट्ठी उसको, दो मुट्ठी उसको, दो मुट्ठी उसको। ये दोनों समाज कभी किसी एक पार्टी को एक मुस्त सौ फीसदी वोट नहीं किया है। यही वजह है कि सवर्ण समाज के नेता मंत्रियों को अपने ही समाज के वोटरों पर भरोसा नहीं है। इसीलिए वो कभी सवर्ण समाज के साथ खड़ा नहीं होता है। वो राजनीति करते हैं, लोकतंत्र में संख्या का महत्व होता है। संख्या कौन दे रहा है उसकी पुछ होती है। जिसके वोटों की संख्या ज्यादा होती है उसी के लिए सत्ता और विपक्ष दोनो खड़ा होता है।
देश का मुसलमान और आरक्षित वर्ग हमेशा सौ फीसदी वोट कर अपने नेता को जिताता है। जबकि सवर्ण समाज के वोट की संख्या अधिक होने के बाद भी कभी किसी एक नेता या पार्टी के साथ खड़ा नहीं होता है... यही वजह है कि सवर्ण वोट कभी भरोसे के काबिल नहीं हुआ। देश का मुसलमान कभी कांग्रेस को छोड़कर दुसरों को वोट नहीं देता है। आरक्षित वर्ग कभी दलित पिछड़ा नेता को छोड़कर किसी दुसरे को वोट नहीं देता है। सवर्ण समाज बता सकता है कि वो किस पार्टी या नेता को अपना सौ फीसदी वोट कर भेजता है। सवर्ण समाज कभी किसी एक पार्टी और नेता को वोट नहीं करता है। जब खुद ही अपनी पहचान बिन पेंदी के लोटा वाला बना रखे हो तो चीखते चिल्लाते रहो.... कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा और तुम्हारे चीखने चिल्लाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जब तक तुम अपना एक अलग स्टैंड नहीं बनाते हो। जिस दिन सवर्ण समाज एक अलग स्टैंड बनाकर किसी एक पार्टी का समर्थन नहीं करोगे तब तक राजनीति के मैदान में तुम्हारी औकात कुछ नहीं होगी। तुम्हारा वोट भी सारी पार्टियाँ लेगा और तुमको ठेंगा भी दिखायेगा। पहरे ये तो तय करो की सवर्ण समाज हमेशा के लिए किस पार्टी का समर्थन करेगा। पहले ये तो तय करो कि सवर्ण का सौ फीसदी वोट सिर्फ सवर्णों को जायेगा। इतना जिस दिन तय कर लोगों उस दिन हर पार्टी और हर नेता तुम्हारे पीछे खड़ा होगा। ये नोटा के हिजड़ेपंथी से सिर्फ डरा सकते हो.... किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकते हो और हाँ मूर्ख होने का तगमा लगेगा सो अलग।
अब सवर्ण समाज तय करे कि वो बिन पेंदी का लोटा बनकर राय की दाना की तरह अपना वोट बिखेरेगा या एक जगह स्थाई जमकर सौ फिसदी वोट देकर राजनीति में अपनी ताकत का एहसास करायेगा।
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