आखिर धार्मिक विचारों में इतनी भेदभाव क्यों...??
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में लिखा है कि मुस्लिम अपने धर्म की बात करे मगर हिन्दु नहीं...!

जब मस्जिदों, खानकाहों से कोई मौलाना कौम और मजहब की बात करता है, बफ्फ बोर्ड सिर्फ मुसलमानों के हक की बात करता है तब कोई मुसलमान ये नहीं कहता है कि भारत सेक्युलर देश है, यहाँ कोई धर्म मजहब नहीं बल्कि इंसान रहता है, इसलिए हर इमाम, मौलाना, बफ्फ बोर्ड का चेयरमैन आम भारतीय नागरिक की बात करे... न कि सिर्फ कौम व मजहब की....!सेक्युलरिज्म का कीड़ा सिर्फ उन दोगले हिन्दुओं को काट रखा है जिसकी पैदाईश में किसी मुल्ले का योगदान रहा है।  भाजपा या आरएसएस अगर हिन्दुस्तान, हिन्दु और हिन्दी की बात करे तो भारत के मुसलमानों से पहले इन सेक्युलर हिन्दुओं की अम्मा विधवा होने लगती है। आ जाता है अपनी दोगली मानसिकता से प्रवचन देने कि भाजपा और आरएसएस हिन्दु मुस्लिम करता है...!  मुल्ले जब अपने कौम और मजहब की बात करता है तब इन दोगले हिन्दुओं का प्रवचन उसके पिछवाड़े में घुस जाता है, औकात नहीं होती है मुंह से बकार निकालने की....!भारत और भारतीय हिन्दुओं का सबसे बड़ा और पहला दुश्मन ये दोगले सेक्युलर हिन्दु ही है जो चंद फायदे के लिए ये धर्म और राष्ट्र ही नहीं....मुल्लों के लिए अपने घर को भी कोठा बनाने में देर नहीं करेगा...!

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