सात दशक बाद करवट ले रही भारतीय राजनीति
सात दशक बाद करवट ले रही भारतीय राजनीति
एक कहावत है कि कश्तुरी की सुगंध में मादक होकर हिरण तलाश में इधर उधर भटकता है जबकि वो कश्तुरी उसके अन्दर है पर उसे पता नहीं।
कुछ ऐसा ही हाल है हिन्दुस्तान के हिन्दुओं का। देश के हिन्दुओं की संख्या और समृद्धि इतना है कि वो जैसा चाहे वैसी सरकार बना सकता है, जैसा चाहे वैसी व्यवस्था ला सकता है। ये अलग बात है कि चंद राजनैतिक दलों ने देश के आजादी के समय से ही अल्पसंख्यक की राजनीति कर मुसलमानों को ज्यादा महत्व ही नहीं दिया बल्कि ज्यादा लाभ देने के लिए संविधान में संशोधन भी किया। एक तरफ देश को धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश घोषित किया तो दुसरी ओर एक सामुदाय विशेष के लिए लगातार काम करता रहा और लाभ देता रहा।
दुसरी तरफ बहुसंख्यक हिन्दुओं के बीच जातिवाद, दलित, पिछड़ा, छुआछूत जैसी बातें कर लगातार हिन्दुओं को तोड़ने की कोशिश जारी रहा। बहुसंख्यक हिन्दू भी जातिय और अमीर गरीब का भेदभाव करता रहा। नतीजा हुआ कि हिन्दु बिखड़ता चला गया और अल्पसंख्यक एकजुट होता गया। अल्पसंख्यकों के इसी एकता ने बिखड़े हिन्दुओं को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया। आज हालत ये है कि बहुसंख्यक होने के बाद भी हिन्दू अपने ही देश में बेगाना हो गया। देश की सत्ता में अल्पसंख्यकों की एकता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरू कर दिया और हिन्दुओं की भूमिका नगण्य होती गई। अल्पसंख्यकों की एकता ने ही देश के तमाम दलों को धर्मनिरपेक्ष बनने के लिए मजबूर कर दिया। सारे राजनैतिक दल जानते थे कि हिन्दुओं का वोट कभी किसी भी दल को एकतरफा नहीं मिलेगा, जबकि अल्पसंख्यकों को ज्यादा से ज्यादा खुश कर दिये तो सारा वोट एकतरफा मिलेगा और जीत पक्की होगी। इन्हीं धारनाओं के कारण भारत में जितने भी राजनैतिक दल बने, सभी धर्मनिरपेक्ष ही बने। हिन्दुओं के बिखराव का ही नतीजा रहा कि कोई भी दल हिन्दुओं के समर्थन में खड़ा होता नहीं नजर आया और न ही किसी ने कभी हिन्दुत्व की बात की।
कहा गया है कि सामर्थवान के सभी साथी होते हैं और गरीब के कोई नहीं। यहाँ संख्या अधिक होते हुए भी देश में राजनैतिक स्तर पर हिन्दु कमजोर थे और कम संख्या होते हुए भी अल्पसंख्यक मजबूत थे।
पहले का जनसंघ से जाने जाने वाला दल 1980 के आसपास भाजपा के रूप में हिन्दू पार्टी बनकर उभरी और हिन्दुत्व की बात की। हिन्दुस्तान का एकमात्र पार्टी थी जो हिन्दुओं के लिए खड़ा होने के कारण लगातार उपेक्षित भी रहा और सत्ता से भी दूर रहा। पर भारतीय जनता पार्टी ने हार नहीं मानी और लगातार हिन्दुत्व और हिन्दुओं के मान सम्मान व हिन्दुओं के अधिकार की लड़ाई अपने ही हिन्दुस्तान में लड़ती रही। भाजपा को हिन्दुओं की ताकत तब मिली जब अयोध्या के राम मंदिर पर बने बाबरी मस्जिद को गिराया गया। जब बाबरी मस्जिद गिराया गया तब हिन्दुओं में एक आशा की किरण दिखी। पर भाजपा को देश के हिन्दुओं से जितना उम्मीद था उतना समर्थन नहीं मिला। वजह ये था कि आजादी के बाद से लगातार सभी धर्मनिरपेक्ष दलों ने हिन्दुओं को सिर्फ छला था। वक्त गुजरता गया और गुजरात के 2002 की घटना ने भाजपा के एक मामुली मुख्यमंत्री को देश के पटल पर उभार कर रख दिया। एक यही मुख्यमंत्री ने हिन्दु कारसेवकों पर किये गये कायराना हमले और हत्या का बदला लेने का काम किया। वरना आजादी के बाद से सारे धर्मनिरपेक्षता दलों और नेताओं ने तो अल्पसंख्यकों को कुछ भी करने की पुरी छूट दे रखी थी और अपनी आँखें भी बंद कर रखी थी। 2002 के गुजरात की घटना के बाद पुरे देश के हिन्दुओं में एक आशा की किरण के साथ साथ एक विश्वास जागा। देश के हिन्दुओं के मन में एक उम्मीद जगी कि जो इंसान अपने राज्य में हिन्दुओं के साथ नाइंसाफी नहीं होने दिया। अगर उस इंसान को देश की सत्ता दे दी जाए तो निश्चित ही देश के हिन्दुओं के साथ राजनैतिक भेदभाव नहीं होगा। यही कारण रहा कि पुरे देश के हिन्दुओं ने एक अभियान चलाकर उस इंसान को राज्य के बाहर निकाल कर देश के पटल पर लाकर खड़ा कर दिया और वर्ष 2014 के आम चुनाव में उस इंसान जिसका नाम नरेन्द्र मोदी है, के अगुवाई में पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। पिछले 70 सालों से जिन दलों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश पर लगातार कब्जा जमाये रखा था, सभी रेत के महल की तरह धराशायी हो गये। सात दशक बाद हिन्दुओं ने अपनी एकता की ताकत का एहसास कराया और एक हिन्दुवादी की सरकार बनाई तो देश के सारे दलों में बेचैनी छा गया। पूर्ण बहुमत की सरकार को तो बीच में गिरा सकते नहीं हैं तो शुरू हो गया विरोधियों का सबसे नीचले स्तर का राजनीति। जिसमें न संविधान का ख्याल रखा गया, न भाषा का और न पद का मर्यादा रखा गया। सात दर्शकों से जिस प्रधानमंत्री को सम्मानीय समझा गया चाहे वो कितनी भी घटिया पार्टी के हों पर जब से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बने तब से सारे संवैधानिक और मर्यादा तार तार होता गया।
विरोधियों द्वारा देश के प्रधानमंत्री के लिए जिस तरह के शब्द इस्तेमाल किये गये उससे दो बातें उभर कर आई। पहला तो शायद आजतक हमने देश की सत्ता उनको दे रखी थी जो कहने को तो भारतीय थे पर हकीकत में वो कहीं न कहीं विदेशी दुश्मनों के लिए एक एजेंट की तरह काम कर रहे थे। दुसरी बात ये है कि
अपने ही देश में लगातार उपेक्षा का दंश झेलने के बाद आजादी के 70 साल बाद सत्ता से बाहर रहने के दर्द को वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
एक कहावत है कि कश्तुरी की सुगंध में मादक होकर हिरण तलाश में इधर उधर भटकता है जबकि वो कश्तुरी उसके अन्दर है पर उसे पता नहीं।
कुछ ऐसा ही हाल है हिन्दुस्तान के हिन्दुओं का। देश के हिन्दुओं की संख्या और समृद्धि इतना है कि वो जैसा चाहे वैसी सरकार बना सकता है, जैसा चाहे वैसी व्यवस्था ला सकता है। ये अलग बात है कि चंद राजनैतिक दलों ने देश के आजादी के समय से ही अल्पसंख्यक की राजनीति कर मुसलमानों को ज्यादा महत्व ही नहीं दिया बल्कि ज्यादा लाभ देने के लिए संविधान में संशोधन भी किया। एक तरफ देश को धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश घोषित किया तो दुसरी ओर एक सामुदाय विशेष के लिए लगातार काम करता रहा और लाभ देता रहा।
दुसरी तरफ बहुसंख्यक हिन्दुओं के बीच जातिवाद, दलित, पिछड़ा, छुआछूत जैसी बातें कर लगातार हिन्दुओं को तोड़ने की कोशिश जारी रहा। बहुसंख्यक हिन्दू भी जातिय और अमीर गरीब का भेदभाव करता रहा। नतीजा हुआ कि हिन्दु बिखड़ता चला गया और अल्पसंख्यक एकजुट होता गया। अल्पसंख्यकों के इसी एकता ने बिखड़े हिन्दुओं को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया। आज हालत ये है कि बहुसंख्यक होने के बाद भी हिन्दू अपने ही देश में बेगाना हो गया। देश की सत्ता में अल्पसंख्यकों की एकता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरू कर दिया और हिन्दुओं की भूमिका नगण्य होती गई। अल्पसंख्यकों की एकता ने ही देश के तमाम दलों को धर्मनिरपेक्ष बनने के लिए मजबूर कर दिया। सारे राजनैतिक दल जानते थे कि हिन्दुओं का वोट कभी किसी भी दल को एकतरफा नहीं मिलेगा, जबकि अल्पसंख्यकों को ज्यादा से ज्यादा खुश कर दिये तो सारा वोट एकतरफा मिलेगा और जीत पक्की होगी। इन्हीं धारनाओं के कारण भारत में जितने भी राजनैतिक दल बने, सभी धर्मनिरपेक्ष ही बने। हिन्दुओं के बिखराव का ही नतीजा रहा कि कोई भी दल हिन्दुओं के समर्थन में खड़ा होता नहीं नजर आया और न ही किसी ने कभी हिन्दुत्व की बात की।
कहा गया है कि सामर्थवान के सभी साथी होते हैं और गरीब के कोई नहीं। यहाँ संख्या अधिक होते हुए भी देश में राजनैतिक स्तर पर हिन्दु कमजोर थे और कम संख्या होते हुए भी अल्पसंख्यक मजबूत थे।
पहले का जनसंघ से जाने जाने वाला दल 1980 के आसपास भाजपा के रूप में हिन्दू पार्टी बनकर उभरी और हिन्दुत्व की बात की। हिन्दुस्तान का एकमात्र पार्टी थी जो हिन्दुओं के लिए खड़ा होने के कारण लगातार उपेक्षित भी रहा और सत्ता से भी दूर रहा। पर भारतीय जनता पार्टी ने हार नहीं मानी और लगातार हिन्दुत्व और हिन्दुओं के मान सम्मान व हिन्दुओं के अधिकार की लड़ाई अपने ही हिन्दुस्तान में लड़ती रही। भाजपा को हिन्दुओं की ताकत तब मिली जब अयोध्या के राम मंदिर पर बने बाबरी मस्जिद को गिराया गया। जब बाबरी मस्जिद गिराया गया तब हिन्दुओं में एक आशा की किरण दिखी। पर भाजपा को देश के हिन्दुओं से जितना उम्मीद था उतना समर्थन नहीं मिला। वजह ये था कि आजादी के बाद से लगातार सभी धर्मनिरपेक्ष दलों ने हिन्दुओं को सिर्फ छला था। वक्त गुजरता गया और गुजरात के 2002 की घटना ने भाजपा के एक मामुली मुख्यमंत्री को देश के पटल पर उभार कर रख दिया। एक यही मुख्यमंत्री ने हिन्दु कारसेवकों पर किये गये कायराना हमले और हत्या का बदला लेने का काम किया। वरना आजादी के बाद से सारे धर्मनिरपेक्षता दलों और नेताओं ने तो अल्पसंख्यकों को कुछ भी करने की पुरी छूट दे रखी थी और अपनी आँखें भी बंद कर रखी थी। 2002 के गुजरात की घटना के बाद पुरे देश के हिन्दुओं में एक आशा की किरण के साथ साथ एक विश्वास जागा। देश के हिन्दुओं के मन में एक उम्मीद जगी कि जो इंसान अपने राज्य में हिन्दुओं के साथ नाइंसाफी नहीं होने दिया। अगर उस इंसान को देश की सत्ता दे दी जाए तो निश्चित ही देश के हिन्दुओं के साथ राजनैतिक भेदभाव नहीं होगा। यही कारण रहा कि पुरे देश के हिन्दुओं ने एक अभियान चलाकर उस इंसान को राज्य के बाहर निकाल कर देश के पटल पर लाकर खड़ा कर दिया और वर्ष 2014 के आम चुनाव में उस इंसान जिसका नाम नरेन्द्र मोदी है, के अगुवाई में पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। पिछले 70 सालों से जिन दलों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश पर लगातार कब्जा जमाये रखा था, सभी रेत के महल की तरह धराशायी हो गये। सात दशक बाद हिन्दुओं ने अपनी एकता की ताकत का एहसास कराया और एक हिन्दुवादी की सरकार बनाई तो देश के सारे दलों में बेचैनी छा गया। पूर्ण बहुमत की सरकार को तो बीच में गिरा सकते नहीं हैं तो शुरू हो गया विरोधियों का सबसे नीचले स्तर का राजनीति। जिसमें न संविधान का ख्याल रखा गया, न भाषा का और न पद का मर्यादा रखा गया। सात दर्शकों से जिस प्रधानमंत्री को सम्मानीय समझा गया चाहे वो कितनी भी घटिया पार्टी के हों पर जब से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बने तब से सारे संवैधानिक और मर्यादा तार तार होता गया।
विरोधियों द्वारा देश के प्रधानमंत्री के लिए जिस तरह के शब्द इस्तेमाल किये गये उससे दो बातें उभर कर आई। पहला तो शायद आजतक हमने देश की सत्ता उनको दे रखी थी जो कहने को तो भारतीय थे पर हकीकत में वो कहीं न कहीं विदेशी दुश्मनों के लिए एक एजेंट की तरह काम कर रहे थे। दुसरी बात ये है कि
अपने ही देश में लगातार उपेक्षा का दंश झेलने के बाद आजादी के 70 साल बाद सत्ता से बाहर रहने के दर्द को वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
देश के 125 साल पुरानी और बड़ी पार्टी कांग्रेस समेत सारी छोटी बड़ी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच एक बेचैनी सी हो रही है, जबकि उन्हें पता है कि पुरे कार्यकाल तक बहुमत वाली सरकार को हम तोड़ तो नहीं सकते पर सरकार के खिलाफ जनता के बीच गलत संदेश देने के लिए किसी भी नीचले स्तर तक की राजनीति कर सकते हैं, किसी भी अमर्यादित और असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल कर मोदी सरकार के प्रति जनता के मन में घृणा पैदा तो कर ही सकते हैं ताकि 2019 के आम चुनाव में मोदी सरकार को हराया जा सके।
अब तीन सालों में जब सारी शक्तियाँ लगाने के बाद भी जिंदा हो रहे हिन्दुओं में मोदी के प्रति झुकाव कम नहीं होते देख सारे सेक्युलर पार्टियां अलग अलग तरीके से हिन्दुओं के बीच अपनी पैठ बनाने में लगे हैं। कल तक जो मस्जिदों और खानकाहों में बैठकर राजनीति की दशा और दिशा तय करते थे वो आज मंदिरों में सिर और नाक रगड़े चल रहे हैं। जो लोग राम के आस्तित्व पर उँगलियाँ उठाते थे आज वही राम की आरती किये चल रहे हैं। जो लोग कल तक मजारों पर जाकर चादरपोशी किया करते थे आज वो मंदिरों में जाकर राजनैतिक पूजा पाठ किये चल रहे हैं। धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के बीच ऐसा बदलाव ऐसे नहीं आया, ये बदलाव सत्ता में हिन्दुओं के शक्तिशाली हस्ताक्षेप के बाद देश पर एक बहुमत वाली सरकार बनाने वाली हिन्दुओं के ताकत का असर है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष बताकर हिन्दुत्व और भगवान को नकारने वाला आज हिन्दुत्व और भगवान के शरण में आकर मक्काड़ी आँसु गिरा रहा है।
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