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डिजीटल जमाने में सोशल मीडिया से पैदा हो रहा है नेता आज एक पोस्ट पर आये कामेंट को पढ़ रहा था। पढ़कर आत्मचिंतन करने की जरूरत महसुस हो रही है। आत्मचिंतन इस बात के लिए कि आजादी के बाद राजनीति की शुरूआत कैसे हुई, देश के नेताओं की उत्पत्ति कैसे हुई?? वैसे मैं इस मुद्दे पर पहले भी लिख चुका हूँ पर उस वक्त और आज में एक और कड़ी जुड़ गया है नेताओं की उत्पत्ति का। तो शुरू करते हैं आजादी से। देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी गई। उस लड़ाई में कई शहीद हुए और जो बचे वो राजनीति शुरू किये... देश की आजादी में उनका योगदान रहा हो या न रहा हो, साल छह महीने ही क्यों न रहा हो.... ये सभी सत्ता पर काबिज हुए। वक्त बढता गया और देश के राजनीतिज्ञों को लगने लगा कि दबंगों की सहायता ली जाए चुनावों में.... इसलिए नेताओं ने दबंगों और अपराधियों का सहयोग लेने लगा मतदाताओं को एक पक्ष में वोट देने के लिए, नेता को जीताने को लेकर बुथ कब्जा करने के लिए। बदलते वक्त में दबंगों और अपराधियों को लगा कि जब मेरे डर से नेता को वोट देकर जीताया जा सकता है तो क्यों न खुद ही चुनाव लड़ने की सोची। चुनाव के लिए रूपयों की जरूरत ...
अपनी दुर्दशा के लिए सवर्ण खुद जिम्मेदार है  राजपूत ब्राह्मण समाज सरकार को कोसकर भेदभाव का आरोप तो लगाते हैं पर कभी अपनी गिरेबां नहीं झांकते हैं। ये दोनों समाज किसी भी पार्टी के लिए न तो सौ फीसदी वोट करते हैं और न किसी एक पार्टी का समर्थन करते हैं। इन दोनों समाजों ने अपने वोट को राय का दाना बना रखा है..... दो मुट्ठी उसको, दो मुट्ठी उसको, दो मुट्ठी उसको। ये दोनों समाज कभी किसी एक पार्टी को एक मुस्त सौ फीसदी वोट नहीं किया है। यही वजह है कि सवर्ण समाज के नेता मंत्रियों को अपने ही समाज के वोटरों पर भरोसा नहीं है। इसीलिए वो कभी सवर्ण समाज के साथ खड़ा नहीं होता है। वो राजनीति करते हैं, लोकतंत्र में संख्या का महत्व होता है। संख्या कौन दे रहा है उसकी पुछ होती है। जिसके वोटों की संख्या ज्यादा होती है उसी के लिए सत्ता और विपक्ष दोनो खड़ा होता है। देश का मुसलमान और आरक्षित वर्ग हमेशा सौ फीसदी वोट कर अपने नेता को जिताता है। जबकि सवर्ण समाज के वोट की संख्या अधिक होने के बाद भी कभी किसी एक नेता या पार्टी के साथ खड़ा नहीं होता है... यही वजह है कि सवर्ण वोट कभी भरोसे के काबिल नहीं हुआ। देश का ...
कुछ सवर्णों को लगता है कि मैं सवर्ण होते हुए भी सवर्णों का विरोध कर रहा हूँ। बिलकुल करूँगा... क्योंकि मैं ढोंग नहीं करता। मुझे भी नफरत है आरक्षण और एससी एसटी कानुन से और साथ ही नोटा से भी। आज जो सवर्ण आरक्षण और एससी एसटी कानुन के आड में नोटा का समर्थन कर रहे हैं वो दरअसल ढोंग कर रहे हैं। मैं किसी भी समस्या का जड़ तलाश कर उसको खत्म करने की बात करता हूँ न कि डाल काटता हूँ। मै उन सवर्णों का साथ कभी नहीं दुँगा जो नोटा का समर्थन कर रहे हैं। नोटा दबाने की बात करने वाले सवर्णों से एक सवाल है कि क्या आरक्षण लागु होने वक्त सत्ता में सवर्ण नहीं था। जिस वक्त आरक्षण लागु किया जा रहा था उस वक्त चुपचाप रहकर नेहरू का तलवा चाटने वाले सवर्णों ने कभी सोचा था कि जिस आरक्षण को हम आज लागु होने दे रहे हैं वो भविष्य में हमारे आने वाली पीढीयों के लिए कितना घातक साबित होगा। उस वक्त न तो सत्ता में बैठा सवर्णों ने विरोध किया और न देशभर के सवर्णों ने। आज वही आरक्षण नासुर बन गया तो चीख रहे रहे हैं। आरक्षण का जहर तो हमारे सवर्णों ने ही हमारे समाज में घोला है। रही बात एससी एसटी कानुन की.... तो ये कानुन भी 1989 मे...
जो सवर्ण भाई और मित्र बंधु नोटा नोटा चिल्ला रहे हैं उन्हें कुछ याद दिलाना चाहता हूँ और वो इन बातों पर जितना हो सके मंथन करें और तब बताएँ कि उनका नोटा का चुनाव सही है या मोदी का फैसला....! आप याद करो.... जब मोदी सरकार उत्तर पूर्वी भारत में रह रहे अवैध बांग्लादेशियों को निकलने के लिए जब अभियान चलाना शुरू किया था तो ममता बनर्जी का बयान याद करें.... वो क्या बोलकर मोदी सरकार को धमकी दी थी कि देश में गृहयुद्ध छिड़ जायेगा। ममता बनर्जी के इस बयान के कुछ ही दिन बाद लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान का बेटा चिराग पासवान ने एससी एसटी कानुन के संसोधन के खिलाफ क्या बोला था। शायद आप नोटा समर्थकों को याद नहीं होगा। चिराग पासवान ने कहा था कि अगर एससी एसटी कानुन के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ होगी तो देश में बबाल होगा जो शायद सरकार को संभालना मुश्किल हो जायेगा। मतलब अपरोक्ष रूप से ये भी धमकी ही था। उधर कांग्रेस की सह पर सर्वोच्च न्यायालय ने एससी एसटी कानुन में संसोधन को लेकर सरकार को अध्यादेश लाने की बात कही थी। अब मोदी सरकार के लिए "उगलो तो अंधा और निगलो तो कोढी" वाली बात हो गई थी। अब ऐसे मे...
भारत के सारे विपक्षियों का एक साथ आना ही मोदी के विकास और सफलतापूर्वक सुशासन की गाथा बयां कर रहा है ये मोदी सरकार के चार सालों के काम का ही नतीजा है कि भाजपा का अश्वमेघ यज्ञ राज्य दर राज्य केसरिया फहराता जा रहा है और इन सबसे इतर सारे विरोधी दल थर-थर कांपते हुये एक मंच से इस अश्वमेघ को रोकने की नाकामयाब कोशिश में हांफ-हांफ कर गिर रहे हैं।विगत चार वर्षों में सुशासन की वो आंधी चली जो विगत दस वर्षों के कुशासन, भ्रष्टाचार को उड़ा कर ले गयी। आमजन में सुशासन की धारणा ने आमजन में अपेक्षाओं को कई गुना बड़ा दिया। आमजन आश्वस्त है कि अब अपेक्षाएं पूरी होंगी , थोड़ा समय लगेगा लेकिन उपेक्षित नहीं होना होगा। चार साल पहले देश का क्या हाल था, जनता में सरकार का विश्वास टूट चुका था, भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार था, रीमोट चलित प्रधानमंत्री डरे-डरे दिखते थे, पड़ोसी देश डरा-धमका जाते थे, विदेशों में हमें बेईमान कहा जाता था। भाजपा के चार सालों में मोदी जी ने देश की भ्रष्ट इमेज खत्म कर दी। बात चार साल की चल रही है चार साल पहले विश्व में भारत की स्थिति किसी से छिपी नहीं है और मोदी सरकार के चार सालों ने पूर...
कर्नाटक राजनीति के सह और मात के खेल में भाजपा ने कांग्रेस को राजनैतिक मात तो दे दी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।  कर्नाटक में नाटक तो दोनों ने किया। भाजपा भी और कांग्रेस-जेडीएस भी। सरकार तो कांग्रेस जेडीएस का ही बनना था। ये कांग्रेस जेडीएस भी जनता था और भाजपा भी जानता था। भाजपा ने कांग्रेस को नंगा करने के लिए तीन दिन नाटक किया तो कांग्रेस ने भाजपा पर विधायकों के खरीद फरोख्त का आरोप लगाकर बदनाम करने का नाटक किया। कांग्रेस ने अपने विधायकों को खुद ही छिपाकर भाजपा पर आरोप लगाया कि मेरे विधायकों को सौ सौ करोड़ में खरीद रहा है। जब सौ सौ करोड़ में विधायक बिक ही गया था तो तो फिर कांग्रेस जेडीएस ने सरकार कैसा बनाई। इधर भाजपा ने सरकार बनाने का दाबा पेशकर कांग्रेसियों की बेचैनी बढ़ा दी। इसी आनन फानन में कांग्रेस ने एक नया इतिहास बना डाला। भारतीय राजनीति के इतिहास में बड़ी पार्टी छोटी पार्टी से समर्थन मांगता था, मगर कर्नाटक मामले में पहली बार 130 साल की पुरानी सरकार मात्र 38 सीट पाने वाले एक क्षेत्रीय पार्टी के आगे नतमस्तक हो गया सत्ता के लिए। भले ही कांग्रेसी माने या न माने, म...
शिक्षा इंसान के विकास की बुनियाद होती है... ऐसा सुना था, पर विकास समाज का दुश्मन होगा.... ये मैने कभी नहीं सुना था। जब देश में जाति आधारित कार्य चल रहे थे और सभी अपने अपने कर्म का निर्वहन कर रहे थे उस वक्त भी समाज में शायद इतनी कटुता, नफरत, घृणा नहीं थी, जितनी आज है। धीरे धीरे इस व्यवस्था को खत्म कर समानता की आवाज उठने लगी। अच्छी पहल थी। होना भी चाहिए। बिलकुल सही बात है सबको समान अधिकार मिलना चाहिए। आज के दौर में सबसे प्रचलित शब्द #सामंती कहे जाने वालों ने तो रियासत, जमींदारी, जमीन और राजपाट सभी त्याग दिये देश के आजादी के बाद। मगर क्या देश में समानता आई...???? हम दाबे के साथ कह सकते हैं कि समानता लाने वाले ठेकेदारों ने समानता तो नहीं ला पाया पर शांति, एकता और प्रेम से चल रहे समाज को छिन्न भिन्न कर असमानता का जहर जरूर घोल दिया, लोगों में नफरत, कटुता और वैमनस्यता जरूर भर दिया। इन समाज सुधारकों ने समानता के नाम पर खुद की मजबुती करते हुए गरीबों के पेट पर लात जरूर मार दिया। ऐसी हालत कर दी कि अपनी जमीन छोड़ पलायन करने को मजबूर हो गया और उसका भी ठीकरा सवर्णों पर ही फोड़ा गया। समाज में ...
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आज जो मैं लिखने जा रहा हूँ वो बिलकुल सच्ची घटना पर आधारित है। मेरे पास अलग अलग लोग अपनी समस्या को लेकर आते हैं। उन समस्याओं को जानने के बाद अनायास मन एक सवाल उठता है कि क्या ऐसा भी होता है?? कभी कभी हम नूतन कहानियाँ जैसी पत्रिकाओं में पढ़ते थे तो सोचता था कि ये किताब वाले कहानी गढकर लिख देते हैं। पर जब वास्तविक जीवन में उन घटनाओं से दो चार होना पडता है तब लगता है वो पत्रिकाएँ सही थी। प्यार करना गुनाह नहीं है पर हमारे भारतीय संस्कृति और समाज को ध्यान में रखते हुए ही ठीक लगता है। बदलते समय में कोई भी युवा पीढ़ी इससे अछुता नहीं है। आज की क्या... बीस तीस साल पहले भी इससे कोई अछुता नहीं रहा है। अन्तर बस इतना ही है कि पहले सार्वजनिक नहीं होता था और वक्त के हिसाब से चलते थे। कोई अपने प्यार को अंजाम दे देते थे तो कोई लोकलाज और पारिवारिक सम्मान के चलते अपने प्यार की कुर्बानी दे देते थे। मगर आज ऐसा नहीं है। आज प्यार में गोपनियता लगभग खत्म सी होती जा रही है। अब सवाल ये है कि जिनके प्यार परवान नहीं चढ़े और उनकी सादी कहीं अन्यत्र हो जाती है तो क्या हम वर्तमान से समझौता करें या अपने प्यार के...
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उपेक्षा के पिंजरे को तोड़ने के लिए बेताब हिन्दूत्व पिछले चार सालों में जिस तरह से देश में  हिन्दुत्व शक्ति बढ़ी है या देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं में हिन्दुत्व के प्रति जागरूकता आई है, उससे यही लगता है कि आने वाले समय में देश की दशा और दिशा तय करने में अहम भूमिका निभायेगी। इसका मुख्य वजह देश में बहुमत से बनी भाजपा की सरकार है। हलांकी ऐसा नहीं है कि पहले भाजपा की सरकारें नहीं बनी थी। बनी थी पर उन सरकारों को न बहुमत थी और न हिन्दुवादी चेहरा, जिसके नेतृत्व में देश के हिन्दुओं का मनोबल बढ़े। अब सबसे बड़ी सवाल है कि आखिर हिन्दू इतनी  उत्साहित क्यों हैं। क्यों आज हर हमले का मजबूती से प्रतिकार कर रहे हैं। क्यों हिन्दुओं और हिन्दुत्व के खिलाफ उठने वाली हर आवाज का जबाब दृढता दे रहे हैं। क्यों वो अपने अधिकारों को के प्रति संजिदा हो गये हैं। इन सब सवालों के जवाब के लिए हमें अपने इतिहास और धार्मिक विचारधाराओं के मान्यताओं पर जाना होगा। सबसे पहले हम सनातन के उन संस्कारों की बात करते हैं जिनमें कहा गया है कि पुरी पृथ्वी, पृथ्वी पर निवास करने वाले हर सजीव और निर्जीव में परमात्मा का निवा...

कोलकाता का माँ काली दर्शन

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ये तस्वीर शायद कोलकाता के उस गली की है जिस गली से होकर कोलकाता के मशहूर काली मंदिर को जाता है। काली मंदिर तक पहुँचने से पहले इनकी नजरों से होकर गुजरना पड़ता है। ये वो बदनाम गली हैं जहाँ देशी विदेशी सभी तरह की वो वेश्याएं सुबह से लेकर रात तक सज धजकर ग्राहक का इंतजार करती रहती है और हर आने जाने वाले पुरूषों को अपनी ओर बुलाने का इशारा भी करती है। एक बार एक कार्य से कोलकाता जाने का मौका मिला तो सोचा माँ काली का दर्शन भी कर लिया जाए। मगर जैसे ही इस गली से होकर जाना हुआ और इन महिलाओं और लड़कियों की हरकतों को देखकर समझते देर नहीं लगी कि ये जिस्म की मंडी है और अगर माता का दर्शन करना है तो इस नर्क से होकर ही जाना होगा। मैने माता को हाथ जोड़कर माफी मांगा और वापस आ गये। मैने ये बातें इसलिए की कि तस्वीर देखकर गुजरे वक्त की यादें ताजा हो गई। इस तस्वीर को देखकर मैं हमेशा सोचता हूँ कि आखिर यहाँ महिलाएँ या लड़कियाँ आती कहाँ से है, कैसे आती है, कौन लाता है, यहाँ आने का कोई मकशद होता है या मजबुरी। बहुत देर मंथन करने के बाद हमें महसूस हुआ कि इन महिलाओं और लड़कियों में ज्यादातर धोखे से लाई जाती है और...
दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग भारत में है जहाँ औसतन आठ सौ से हजार फिल्में बनती है। भारत में भारतीय भाषाओं के अलावा हालीवुड की फिल्में भी बनती है। सबसे बड़े फिल्म उद्योग होने के कारण ही दुनिया के हर देश से कलाकार यहाँ काम करने आते हैं। हैरत की बात है कि जिस देश के एक से एक दिग्गज कलाकारों से लेकर तकनीशियनों ने दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग बनाने का काम किया उस देश में आज कलाकार के साथ साथ तकनीशियन उस देश से आकर काम कर रहा है जहाँ उसको खाने की भी औकात नहीं है। पुरा देश कर्ज में डुबा हुआ है। जिस पाकिस्तान के बंदरगाह बिक रहे हैं उस देश के फिल्म तकनिशियन भारतीय फिल्म उद्योग को सिखाने आता है। दर असल ये काम करने नहीं बल्कि दाउद के काले धन को सफेद भी कर रहा है साथ ही फिल्म की आड़ में भारतीय रूपया पाकिस्तान को भेजा जा रहा है..... और उन्ही पैसों से एक तरफ पाकिस्तान के भिखाड़ी का पेट भर रहा है तो दुसरी तरफ भारत के खिलाफ लड़ाई कर रहे आतंकियों के लिए गोला बारूद भी खरीद रहा है। ज्यादा से ज्यादा भारतीय रूपया पाकिस्तान जाए उसके लिए फिल्म उद्योग में हर तरह के कामों में पाकिस्तानियों को भरा जा ...
मुसलमान चाहे दो कौड़ी का हो या अरबपति, पढ़ा लिखा हो या जाहिल.... बात जब धर्म की आती है तो उसको किसी का मान सम्मान, इंसानियत, मानवता, प्रेम भाईचारा और जाति कुछ भी नजर नहीं आता है.... उसको नजर आता है तो बस सिर्फ कौम.... चाहे कौम में एक सौ नहीं बल्कि एक हजार खराबियाँ हो। और एक तरफ है वो हिन्दू जो शायद एक मुहल्ले का चुनाव भी जितने की औकात न हो, दिन भर तलवा चाटने की आदत हो चुकी हो, इंसानियत, मानवता और प्रेम भाईचारा के नाम पर नपुंसकता छिपाने की आदत हो गई हो..... इसके बाद भी जब पिछवाड़ा शांत नहीं होता है तो शुरू हो जाता है जाति के नाम पर भड़वागिरी करने। जब ऐसे ऐसे दोगले और मुल्लों के दलाल हिन्दू देश में है तो 14% की आबादी वाला पंचर टाइप दो कौड़ी का मुल्ला फड़फड़ायेगा हीं। जिसके मजार पर हिन्दु अगर चवन्नी न उछाले तो एक चादर नसीब न हो उसके मजार पर.....बाबजूद हिन्दुओं को चाईलेंज दिया जाता है क्योकि वो जानता है कि 80% हिन्दू दलाल, मूर्ख, भड़वे और तलवाचट है....मुसलमान जानता है कि यहाँ के हिन्दुओं की औकात कूत्ते की हड्डी भर है, हड्डी फेंको तो हिन्दु मुसलमानों के आगे पीछे दूम ही नहीं हिलायेगा बल्क...
बिलकुल देश चिरकुट ही है राज भाई, हमे पता है जिस समय इस कामेंट को पढ़ रहे होंगे उस समय पुन: आपको लग रहा होगा कि हम गुस्से में है, मगर ऐसा कुछ नहीं है। रही बात देश के चिरकुट होने की तो जो मेरा तजुर्बा है और मैं जितना समझ सकता हूँ उतनी बता रहा हूँ। वैसे मैं भी मात्र बोर्ड पास हूँ और कुछ भी पढने लिखने का शौक हमेशा रहता है जिससे कुछ मेरी जिज्ञासा की भूख कम हो सके। तो बता रहा था कि पुरी दुनियाँ में इंसान कहीं भी रह सकता है, कमा सकता है और वहां बस भी सकता है। कई देश तो ऐसे हैं कि वहाँ की नागरिकता पाने में वर्षों गुजर जाता है और कई देश ऐसे भी हैं कि कई तरह के अग्नि परीक्षा देने के बाद नागरिकता मिलती है। नागरिकता मिल भी जाती है तो कई शर्तों और नियमों का पालन भी करना पड़ता है। मतलब हम या आप जिस देश में रहेगें, वहाँ के नियम कानुन का अक्षरश: पालन करना पड़ता है। उस देश में नागरिकता मिल भी जाती है तो वो दोयम दर्जे का होता है, मतलब देश के किसी भी सुविधा संपदा पर पहला हक उस देश के मूल निवासी का होता है। अब इतनी बात होने के बाद तो आप समझ ही गये होंगे कि धार्मिक मामलों में क्या नियम कानुन का पालन करना ...
आज कल मोहब्बत फेक हैं... आज कल मोहब्बत फेक हैं, क्यूंकि आज की मोहब्बत  " फेसबुक"   जी +" और "व्हाट्सअप" हो गई हैं l यहाँ रोज नित नए चेहरों से मुलाक़ात हो जाती हैं धीरे - धीरे दोस्ती और फिर मोहब्बत की शुरुवात हो जाती हैं l फिर नम्बरों का आदान प्रदान होता हैं और पूरी रात जाग कर मोहब्बत के पाठ पढ़े जाते हैं l वादों का सिलसिला चलने लगता हैं, साथ निभाने के की कसमें खाई जाती हैं l फिर धीरे धीरे रिश्तो में शक और जरूरत का नाम आ जाता हैं, और रिश्ते टूट कर चकनाचूर हो जाते हैं l फिर दोनों एक दुसरे से बात करना बंद कर देते हैं लड़का या लड़की एक दुसरे को ब्लोक कर देते हैं और फिर एक दुसरे को भूल कर और नयें के साथ शुरू हो जाते हैं l वो ही कर्म चलता हैं और मोहब्बत तमाशा बन जाती हैं l कुछ सच्ची मोहब्बत करने वाले भी होते हैं उनमें कुछ शराबी तो कुछ देवदास तो कुछ शायर बन जाते हैं और कुछ इतने निराश हो जाते हैं खुद को खत्म कर लेते हैं पर ये वो होते हैं जो सच्चे दिल से प्यार करते हैं पर आज के युग में सच्ची मोहब्बत कभी किसी को रास नहीं आती हैं और यही आज का सच्च हैं किसी को हद से ज्य...
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जन्म से ब्राह्मण या उच्च जाति का मानने वालों के पास इसका कोई प्रमाण नहीं है | ज्यादा से ज्यादा वे इतना बता सकते हैं कि कुछ पीढ़ियों पहले से उनके पूर्वज स्वयं को ऊँची जाति का कहलाते आए हैं | ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सभ्यता के आरंभ से ही यह लोग ऊँची जाति के थे | जब वह यह साबित नहीं कर सकते तो उनको यह कहने का क्या अधिकार है कि आज जिन्हें जन्मना शूद्र माना जाता है, वह कुछ पीढ़ियों पहले ब्राह्मण नहीं थे ? और स्वयं जो अपने को ऊँची जाति का कहते हैं वे कुछ पीढ़ियों पहले शूद्र नहीं थे ? मनुस्मृति ३.१०९ में साफ़ कहा है कि अपने गोत्र या कुल की दुहाई देकर भोजन करने वाले को स्वयं का उगलकर खाने वाला माना जाए | अतः मनुस्मृति के अनुसार जो जन्मना ब्राह्मण या ऊँची जाति वाले अपने गोत्र या वंश का हवाला देकर स्वयं को बड़ा कहते हैं और मान-सम्मान की अपेक्षा रखते हैं उन्हें तिरस्कृत किया जाना चाहिए | मनुस्मृति २. १३६: धनी होना, बांधव होना, आयु में बड़े होना, श्रेष्ठ कर्म का होना और विद्वत्ता यह पाँच सम्मान के उत्तरोत्तर मानदंड हैं | इन में कहीं भी कुल, जाति, गोत्र या वंश को सम्मान का मानदंड नह...
जातिय मुद्दे लिखने का मेरा मकशत किसी चोट पहुँचाना नहीं होता है। जिस वक्त हम जातिय विभेद कर रहे होते हैं उस वक्त बहुत तकलीफ हो रही होती है। मगर क्या करें, जब लोग आज के बदले व्यवस्था को नजरंदाज कर वर्षों पुरानी घिसी पिटी व्यवस्थाओं का रोना रोने लगते हैं तो गुस्सा आ जाता है उसके घटिया और पिछड़ी हुई सोंच पर हमें गुस्सा आ जाता है तब जब वो हिन्दू होकर हिन्दू विरोधी बातें करता है और अपने धर्म को गाली देता है। हमें गुस्सा तब आता है जब अपनी निकम्मेपन को छुपाने के लिए व्यवस्था और जातिय भेदभाव का आरोप लगाता है। हमारा सवाल उन कथित पिछड़े, शोषित पीड़ित दलितों से है कि क्या आज राजा या राजतंत्र है क्या आज जमींदारी है क्या आज भेदभाव और छूआछुत है क्या आज तुम्हें शिक्षा से वंचित किया जा रहा है क्या आज तुम्हारा शोषण हो रहा है अगर नहीं तो आजादी के 70 सालों से विशेष संवैधानिक व्यवस्था दिये जाने के बाद भी तुम आज भी पीड़ित, शोषित, दबा कुचला दलित कैसे हो.......????? इंसानी शक्ल में तुम अगर पैदा हुए हो तो थेथरलॉजी करने या वर्षों पुरानी राग पर रोना रोने के बजाय इमानदारी से सटीक जबाब देना।